‘संत फ्रांसिस ज़ेवियर’ के पवित्र अवशेषों की भव्य प्रदर्शनी: 21 नवंबर 2024 से शुरू

हर दस साल में गोवा और दमन के आर्कडायोसिस (Archdiocese) में सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के पवित्र अवशेषों (Sacred Relics) की प्रदर्शनी (Exposition) होती है। इस परंपरा के तहत, 18वीं प्रदर्शनी 21 नवंबर 2024, गुरुवार से शुरू होगी और 05 जनवरी 2025, रविवार को समाप्त होगी। 21 नवंबर को सुबह 9:30 बजे एक विशेष यूखरिस्ट (Solemn Eucharist) के बाद पवित्र अवशेषों को एक जुलूस (Procession) के माध्यम से सी कैथेड्रल चर्च (See Cathedral Church) में ले जाया जाएगा। वहां ये अवशेष 45 दिनों तक भक्तों के लिए दर्शन (Veneration) के लिए रखे जाएंगे।

2025 में चर्च गोवा और दमन, यूनिवर्सल चर्च (Universal Church) के साथ जुबली वर्ष (Jubilee Year) की तैयारी कर रहा है। इस प्रदर्शनी का थीम (Theme) है “Xubhvortomanache Porgottnnar ami” यानी “हम शुभ समाचार के दूत हैं (We are Messengers of the Good News)”। इस अवसर के लिए एक विशेष लोगो (Logo) भी तैयार किया गया है।

प्रदर्शनी के दौरान सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर पर एक आर्ट एग्जीबिशन (Art Exhibition) भी आयोजित की जाएगी, जिसमें गोवा और भारत के प्रमुख कलाकार भाग लेंगे। साथ ही, सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर की जीवन कहानी पर आधारित एक पुस्तक (Book) भी जारी की जाएगी।

मुख्य बिंदु (Highlights)

सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के पवित्र अवशेषों की प्रदर्शनी का परिचय

सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के पवित्र अवशेषों (Sacred Relics) की प्रदर्शनी गोवा के ओल्ड गोवा में हर दस साल में आयोजित होने वाला एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। यह धार्मिक आयोजन दुनियाभर से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर का सम्मान करता है, जो एक प्रसिद्ध स्पेनिश मिशनरी और सोसाइटी ऑफ जीसस (Society of Jesus – Jesuits) के सह-संस्थापक थे। एशिया में उनके व्यापक मिशनरी कार्यों के लिए उन्हें आदर के साथ पूजा जाता है, और उनका आध्यात्मिक योगदान स्थायी रूप से माना जाता है।

प्रदर्शनी (Exposition) के दौरान, सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के पवित्र अवशेष, जो सामान्यतः बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस (Basilica of Bom Jesus) में रखे जाते हैं, सार्वजनिक पूजा के लिए से कैथेड्रल (Sé Catedral) में प्रदर्शित किए जाते हैं। यह कार्यक्रम कई सप्ताह तक चलता है, जिसमें विभिन्न धार्मिक समारोह, जैसे मासेस (Masses), प्रार्थना सेवाएं (Prayer Services), नोवेना (Novenas), और जुलूस (Processions) शामिल होते हैं। यह गहरा आध्यात्मिक चिंतन, भक्ति और उत्सव का समय होता है, जो गोवा की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को उजागर करता है।

सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर – संत के अवशेष

सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर का निधन 3 दिसंबर 1552 को चीन के तट के पास शांगचुआन द्वीप पर हुआ था। उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें वहां एक साधारण कब्र में दफनाया गया था। संत की महत्ता को समझते हुए और उनके अवशेषों के साथ छेड़छाड़ की संभावना के चलते, फरवरी 1553 में उनके शरीर को बाहर निकाला गया और मलक्का (Malacca) ले जाया गया। मलक्का में, उनके शरीर को अस्थायी रूप से सेंट पॉल चर्च (Church of St. Paul) में रखा गया, जहाँ यह कई महीनों तक रहा। इस दौरान, उनका शरीर अद्भुत रूप से सुरक्षित पाया गया।

Basilica of Bom Jesus, Goa

दिसंबर 1553 में निर्णय लिया गया कि उनके शरीर को गोवा, भारत में स्थानांतरित किया जाएगा, जो जेसुइट मिशनों का एक प्रमुख केंद्र था। गोवा में 1554 की शुरुआत में पहुँचने के बाद, उनके शरीर को बॉम जीसस बेसिलिका (Basilica of Bom Jesus) में रखा गया। आश्चर्यजनक रूप से, उनके शरीर में वर्षों बाद भी बहुत कम क्षय के संकेत दिखाई दिए, जिसे कई लोग उनकी पवित्रता का प्रतीक मानते हैं। यह चमत्कार तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।

संत के अवशेषों की पूजा हर दस साल में की जाती है, जिन्हें एक कांच के कंटेनर में रखा जाता है ताकि भक्त स्पष्ट रूप से देख सकें। इसके अलावा, उनका एक महत्वपूर्ण अवशेष, उनका दायां हाथ, जिसका उन्होंने कई लोगों का बपतिस्मा किया, रोम के गेसू चर्च (Church of the Gesù) में अलग से रखा गया है। सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के इन अवशेषों का संरक्षण और उनकी पूजा आज भी भक्तों में आस्था और चमत्कार की भावना जगाती है, और दुनियाभर से तीर्थयात्री उनकी विरासत का सम्मान करने और उनकी मध्यस्थता के लिए आते हैं।

सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर का दायां हाथ, Church of the Gesù, Rome

सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर का संक्षिप्त जीवन

सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर का जन्म 7 अप्रैल 1506 को नवार (Navarre) राज्य में हुआ था, जो आज के स्पेन का हिस्सा है। वह ईसाई इतिहास के सबसे प्रसिद्ध मिशनरियों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय (University of Paris) से शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उनकी मुलाकात इग्नाटियस ऑफ लोयोला (Ignatius of Loyola) से हुई, और वह जेसुइट (Society of Jesus) संस्था के शुरुआती सदस्यों में से एक बने।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

फ्रांसिस ज़ेवियर का जन्म एक कुलीन परिवार में नवार के ज़ेवियर किले (Castle of Xavier) में हुआ। युवा अवस्था में, वे एक मेधावी छात्र के रूप में जाने गए और उन्हें पेरिस विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा गया। यहीं पर उनकी मुलाकात इग्नाटियस ऑफ लोयोला से हुई, जिनकी आध्यात्मिक दृष्टि ने उन्हें गहरे धार्मिक जीवन की ओर प्रेरित किया।

दीक्षा और पुरोहिताई

1534 में, फ्रांसिस ज़ेवियर ने इग्नाटियस और पाँच अन्य साथियों के साथ गरीबी, पवित्रता और आज्ञाकारिता की प्रतिज्ञा ली, जिसमें एक प्रतिज्ञा रोम जाकर पोप की सेवा करने की भी थी। यह समूह बाद में जेसुइट समुदाय बना। 1537 में वे इटली के वेनिस (Venice) में पुरोहित बनाए गए। इसके बाद उन्होंने जेसुइट समुदाय को स्थापित करने में मदद की और पूर्वी मिशनों में जाने के लिए स्वेच्छा से प्रस्तुत हुए।

गोवा में मिशनरी कार्य

1541 में, फ्रांसिस ज़ेवियर ने भारत के लिए यात्रा शुरू की। 1542 में वे गोवा पहुँचे, जो उस समय एक पुर्तगाली उपनिवेश था। गोवा उनके मिशनरी कार्यों का केंद्र बना, जहाँ उन्होंने स्थानीय निवासियों और पुर्तगाली निवासियों की सेवा की। उन्होंने कई स्कूल और चर्च स्थापित किए और लोगों के नैतिक और आध्यात्मिक जीवन को सुधारने के लिए प्रयास किए।

आगे की मिशनरी यात्रा

गोवा में सफल मिशन के बाद, फ्रांसिस ज़ेवियर ने अपने मिशन को अन्य क्षेत्रों में विस्तारित किया। उन्होंने मलय द्वीपसमूह (Malay Archipelago) और 1549 में जापान की यात्रा की, जहाँ उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार किया। जापान में उनका काम अभूतपूर्व था, जहाँ उन्होंने ईसाई धर्म की नींव रखी।

मृत्यु और विरासत

उनका अंतिम मिशन चीन में ईसाई धर्म का प्रचार करना था, लेकिन 1552 में चीन के तट पर स्थित शांगचुआन द्वीप पर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। उनका शरीर बाद में गोवा लाया गया, जहाँ इसे अविनाशी पाया गया। आज भी उनके अवशेष गोवा के बॉम जीसस बेसिलिका (Basilica of Bom Jesus) में संरक्षित हैं।

संत घोषणा और सम्मान

सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर को 12 मार्च 1622 को पोप ग्रेगरी XV (Pope Gregory XV) द्वारा संत घोषित किया गया। उन्हें मिशनरियों के संरक्षक संत के रूप में मनाया जाता है। उनका पर्व 3 दिसंबर को मनाया जाता है। हर दस साल में गोवा में उनके पवित्र अवशेषों की प्रदर्शनी होती है, जिसमें लाखों तीर्थयात्री भाग लेते हैं।

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