महाराजा अग्रसेन जयंती: कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है 

इस वर्ष महाराजा अग्रसेन जयंती 3 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी। यह त्योहार हर साल आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है, जो नवरात्रि के पहले दिन के साथ भी मेल खाता है। महाराजा अग्रसेन को अग्रवाल और अन्य वैश्य समुदायों के पूर्वज के रूप में पूजा जाता है, और उनकी जयंती पर विशेष रूप से हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में छुट्टी रहती है। इस दिन लोग कुलदेवी के मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और भगवान से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

हरियाणा के अग्रोहा शहर में इस दिन विशेष शोभायात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में महाराजा अग्रसेन के परिवार के चित्र और अवशेष शामिल किए जाते हैं। पारंपरिक लंगर का आयोजन भी होता है, जिसमें प्रसाद वितरण किया जाता है।

मुख्य बिंदु (Highlights)

महाराजा अग्रसेन: व्यापारी समुदाय के प्रेरणा स्रोत

महाराजा अग्रसेन का नाम अग्रवाल और अग्रहरी समुदाय के लोगों में बड़ी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। वे हरियाणा के अग्रोहा शहर के एक राजा थे और उन्हें व्यापारिक समुदाय का संस्थापक माना जाता है। उनकी जीवनगाथा, शौर्य और सेवा के प्रति उनकी निष्ठा आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। इस लेख में हम महाराजा अग्रसेन की पौराणिक कथा, उनके आदर्शों और उनके योगदान के बारे में विस्तार से जानेंगे।

महाराजा अग्रसेन का जन्म और प्रारंभिक जीवन

महाराजा अग्रसेन का जन्म द्वापर युग के अंतिम काल (याने महाभारत काल) में और कलयुग की शुरुआत में हुआ था। कालगणना के अनुसार विक्रम संवत आरंभ होने से 3130 वर्ष पूर्व अर्थात आज से 5203 वर्ष पूर्व हुआ। वे सूर्यवंशी थे और भगवान श्रीराम की 34वीं पीढ़ी में जन्मे थे। उनका जन्म अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ, इसी दिन से शारदीय नवरात्रि का भी आरंभ होता है, और इस दिन को अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है।

महाराजा अग्रसेन के पिता प्रतापनगर के राजा वल्लभसेन थे और उनकी माता का नाम भगवती देवी था। प्रतापनगर वर्तमान में राजस्थान और हरियाणा के बीच सरस्वती नदी के किनारे स्थित था। महाराजा अग्रसेन बचपन से ही मेधावी और तेजस्वी थे, और वे हमेशा अपने राज्य और प्रजा के कल्याण के बारे में सोचते थे।

विवाह और तपस्या

महाराजा अग्रसेन का विवाह नागराज कुमुट की बेटी, राजकुमारी माधवी के साथ हुआ था। जब महाराजा अग्रसेन को अपने पिता की आज्ञा से माधवी के स्वयंवर में गए, वहां देवताओं (जिनमें देवराज इंद्र भी शामिल थे), राजा-महाराजाओं, और वीर योद्धाओं की एक बड़ी सभा मौजूद थी। इस स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने पूरे समाज के बीच महाराजा अग्रसेन को वरमाला पहनाकर उन्हें अपना जीवनसाथी चुना।

इस घटना ने देवराज इंद्र को क्रोधित कर दिया, क्योंकि उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। क्रोध में, इंद्र ने महाराजा अग्रसेन के राज्य पर सूखे का श्राप दिया, जिससे राज्य में हाहाकार मच गया और प्रजा कष्ट में डूब गई। इस विवाह से इंद्र नाराज़ हो गए और उन्होंने प्रतापनगर में वर्षा रुकवा दी। प्रजा अकाल से परेशान हो गई, और महाराज अग्रसेन ने इंद्र के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। इस युद्ध में अग्रसेन की जीत होती दिख रही थी, लेकिन नारद मुनि की मध्यस्थता से दोनों के बीच समझौता हो गया।

अग्रसेन और व्यापारिक साम्राज्य की स्थापना

इसके बाद महाराज अग्रसेन ने शिव की तपस्या की, जिन्होंने माँ लक्ष्मी की उपासना करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उन्हें नया राज्य स्थापित करने का आशीर्वाद दिया। महाराज अग्रसेन, अपनी रानी माधवी के साथ, पूरे भारतवर्ष में भ्रमण करने लगे। उनका उद्देश्य था एक नए राज्य की स्थापना के लिए सही स्थान की तलाश करना, जो उनके वंश और समाज के लिए समृद्धि ला सके। भ्रमण के दौरान, एक दिन उन्होंने देखा कि एक शेरनी अपने शावक को जन्म दे रही थी। जैसे ही शावक ने जन्म लिया, वह तुरंत सक्रिय हो गया और अपनी माँ के पास जाने के बजाय महाराज अग्रसेन के हाथी पर छलांग लगा दी। यह देखकर महाराज को लगा कि यह कोई साधारण घटना नहीं है, बल्कि एक दिव्य संकेत है।

शेरनी और शावक के इस दृश्य को देखकर महाराज अग्रसेन को विश्वास हुआ कि यही वह भूमि है, जहां उन्हें अपना नया राज्य स्थापित करना चाहिए। इस स्थान पर उन्हें प्रकृति की शक्ति और साहस का प्रतीक दिखाई दिया, जो एक नई शुरुआत के लिए उपयुक्त स्थान साबित हो सकता था। महाराज ने ऋषि-मुनियों और ज्योतिषियों से इस बारे में सलाह ली, और उन्होंने भी इस स्थान को राज्य स्थापना के लिए शुभ बताया।

इस दैवीय संकेत के आधार पर, महाराज अग्रसेन ने इस भूमि को चुना और यहाँ पर ‘अग्रोहा’ नामक एक नए राज्य की स्थापना की। अग्रोहा की राजधानी को ‘अग्रोदय’ नाम दिया गया, जो आज के हरियाणा राज्य के हिसार जिले के पास स्थित है। इस स्थान को आज भी अग्रवाल समाज के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है, जिसे “पांचवा धाम” कहा जाता है। यही से अग्रसेन का वंश और अग्रवाल समाज की शुरुआत मानी जाती है, जो व्यापार और समाजसेवा में अग्रणी हैं।

महाराजा अग्रसेन के नेतृत्व में अग्रोहा राज्य व्यापारिक गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। उन्होंने “एक ईंट और एक रुपया” (one brick and one rupee) की अनोखी सामाजिक नीति शुरू की। इसके तहत, जब भी कोई नया परिवार राज्य में बसता, तो हर परिवार उसे एक ईंट और एक रुपया देता। इस नीति ने राज्य को आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत किया।

पशुबलि का विरोध

महाराजा अग्रसेन ने माता महालक्ष्मी की कृपा से अपने राज्य को 18 गणराज्यों में विभाजित किया, जो उनके नाम से ‘अग्रेय गणराज्य’ या ‘अग्रोदय’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन से 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया, जिसमें प्रत्येक यज्ञ में एक गणाधिपति को शामिल किया गया। इन गणाधिपतियों के नाम पर ही अग्रवाल समाज के साढ़े सत्रह गोत्रों की स्थापना हुई।

यज्ञों के दौरान महाराज अग्रसेन के राज्य में उस समय प्रचलित प्रथा के अनुसार पशुबलि दी जाती थी। पहले यज्ञ में स्वयं महर्षि गर्ग ने अग्रवाल गोत्र के प्रथम गणाधिपति को दीक्षित किया और उन्हें ‘गर्ग गोत्र’ प्रदान किया। इसी प्रकार, दूसरे यज्ञ में गोभिल ऋषि ने ‘गोयल गोत्र’, तीसरे में गौतम ऋषि ने ‘गोइन गोत्र’ दिया। इस प्रकार, 18 यज्ञों में से 17 यज्ञ पूरे किए गए, जिनमें विभिन्न ऋषियों ने भाग लेकर गणाधिपतियों को गोत्र प्रदान किए।

जब अंतिम, यानी 18वां यज्ञ शुरू हुआ, तो उसमें भी पशुबलि देने की प्रथा जारी थी। लेकिन महाराजा अग्रसेन, जो अहिंसा के समर्थक थे, इस दृश्य को देखकर अत्यंत व्यथित हो गए। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और घोषणा की कि उनके राज्य में अब से कोई भी व्यक्ति पशुबलि नहीं देगा। उन्होंने कहा कि किसी भी प्राणी का जीवन अनमोल है और उसे मारना या उसका मांस खाना अनैतिक है। इसी घटना के बाद, उन्होंने अहिंसा का पालन करने का निर्णय लिया और अपने पूरे राज्य में इस सिद्धांत को लागू किया।

अठारहवें यज्ञ में, यज्ञाचार्यों ने यह कहा कि बिना पशुबलि के यज्ञ अधूरा रहेगा और गोत्र पूरा नहीं होगा। परंतु महाराजा अग्रसेन ने इस यज्ञ में पशुबलि से इंकार किया और नागेंद्र ऋषि द्वारा नांगल गोत्र स्थापित किया गया। चूंकि इस यज्ञ में बलि नहीं दी गई थी, इसे आधा गोत्र माना गया। इसीलिए अग्रवाल समाज में 18 गोत्र नहीं, बल्कि साढ़े सत्रह गोत्र माने जाते हैं।

इस पूरी घटना ने महाराजा अग्रसेन को अहिंसा के मार्ग पर अग्रसर किया और उनके राज्य में प्राणीमात्र की रक्षा का सिद्धांत गहराई से स्थापित हो गया। यह उनका महत्वपूर्ण योगदान था, जिसने न केवल उनके राज्य को समृद्ध बनाया, बल्कि उनके वंशजों को भी सच्चे मानवतावादी सिद्धांतों के साथ आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया।

साढ़े सत्रह गोत्र

महाराजा अग्रसेन ने 18 यज्ञ किए थे, और प्रत्येक यज्ञ के बाद एक गोत्र की स्थापना की गई थी। परंतु 18वें यज्ञ के दौरान, जब पशुबलि दी जा रही थी, महाराजा अग्रसेन को उस दृश्य से घृणा हो गई और उन्होंने पशुबलि को रोकने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने अहिंसा का पालन करने की प्रतिज्ञा की और भविष्य में यज्ञों में पशुबलि न देने का आदेश दिया।

इस घटना के कारण, 18वें यज्ञ में पूर्ण गोत्र की स्थापना नहीं हो पाई। यज्ञाचार्यों ने इसे अधूरा माना, और यह गोत्र ‘साढ़े सत्रह’ (17.5) गोत्र कहलाया। अंतिम यज्ञ में नगेन्द्र ऋषि ने ‘नांगल’ गोत्र की स्थापना की, परंतु चूंकि इस यज्ञ में पशुबलि नहीं दी गई, यह गोत्र अधूरा माना जाता है, जिससे इसे “साढ़े सत्रह गोत्र” कहा जाता है। इसी कारण, अग्रवाल समाज में 18 की बजाय साढ़े सत्रह गोत्र प्रचलित हैं।

महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य को 18 गणों में विभाजित करके, प्रत्येक गण के नाम पर 18 गोत्रों की स्थापना की थी। इन गोत्रों के नाम 18 प्रमुख ऋषियों के नाम पर रखे गए थे, जो विभिन्न गुरुओं और धार्मिक आचार्यों के नाम थे। इन गोत्रों का उद्देश्य राज्य के विभिन्न परिवारों को एक सूत्र में बांधना और समाज के हर वर्ग को एक समान अधिकार देना था।

महाराज ने इन 18 गणों से प्रत्येक गण का एक-एक प्रतिनिधि चुना, जिसे एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा बनाया गया। इस प्रणाली का स्वरूप आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था के समान था, जहां प्रत्येक प्रतिनिधि का अपना महत्व था और वह राज्य की उन्नति में योगदान देता था। यह अग्रसेन का महान योगदान था कि उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से एक सशक्त और समृद्ध राज्य का निर्माण किया।

अग्रवाल समाज में इन 18 गोत्रों के नाम इस प्रकार हैं:

ऐरनबंसलबिंदल
भंदलधारणगर्ग
गोयलगोयनजिंदल
कंसलकुच्छलमधुकुल
मंगलमित्तलनागल
सिंघलतायलतिंगल

यह 18 गोत्र अब भी अग्रवाल समाज में विशेष पहचान रखते हैं और यह परंपरा महाराजा अग्रसेन द्वारा दी गई सामाजिक एकता का प्रतीक है।

महाराजा अग्रसेन के आदर्श

महाराजा अग्रसेन ने समाज में समानता, भाईचारा और आर्थिक समरूपता के सिद्धांतों को अपनाया। वे विश्व के पहले राजा थे जिन्होंने समानता पर आधारित आर्थिक नीतियों को लागू किया। उनके शासन में हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिला। महाराजा अग्रसेन के तीन मुख्य आदर्श थे:

  1. लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था (democratic governance)
  2. आर्थिक समरूपता (economic equality)
  3. सामाजिक समानता (social equality)

उन्होंने राज्य में कई अस्पताल, स्कूल, धर्मशालाएं और बावड़ियां बनवाईं। उनका शासनकाल 108 वर्षों तक चला, जिसमें राज्य ने अभूतपूर्व उन्नति और विकास देखा।

महाराजा अग्रसेन की स्मृति में सेवा कार्य

आज भी महाराजा अग्रसेन की स्मृति में कई समाजसेवी कार्य किए जाते हैं। अग्रवाल और अग्रहरी समुदाय के लोग इस दिन निशुल्क चिकित्सा शिविरों (medical camps) का आयोजन करते हैं, गरीबों में भोजन वितरण करते हैं और कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। ये सभी कार्य महाराजा अग्रसेन के आदर्शों को जीवित रखने के लिए किए जाते हैं। महाराजा अग्रसेन का जीवन समाज के लिए प्रेरणास्रोत है। वे एक ऐसे राजा थे जिन्होंने न केवल अपने राज्य को समृद्ध बनाया, बल्कि समाज में समानता और भाईचारे का संदेश भी दिया। उनकी नीतियों और आदर्शों का पालन आज भी लोग करते हैं और उनके योगदान को हर साल जयंती के रूप में मनाया जाता है। उनके महान कार्यों और आदर्शों को याद करते हुए हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।

महाराजा अग्रसेन जयंती की शुभकामनाओं के संदेश – अपने प्रियजनों को भेजें प्यार और समृद्धि से भरी खास शुभकामनाएं!

अपने प्रियजनों को भेजें ‘महाराजा अग्रसेन जयंती’ की शुभकामनाएं। खास तौर पर आपके लिए तैयार किए गए SMS संदेश, Whatsapp संदेश और शुभकामनाएं।

Wish your loved ones a Blessed ‘Maharaja Agrasen Jayanti’ with Quotes, SMS Messages, WhatsApp Messages & Greetings specially put together for you.

Greeting Messages in English
Happy Maharaja Agrasen Jayanti to all. May Maharaja Agrasen always be there to guide us towards a path that is a progressive for our society.
Not every king has the power to win hearts in India, but Maharaja Agrasen was one such king. Happy Maharaja Agrasen Jayanti.
Let us take inspiration from Maharaja Agrasen and aim for a positive and progressive life. Happy Maharaja Agrasen Jayanti to all.
On the occasion of Maharaja Agrasen Jayanti, take motivation from Maharaja Agrasen and do as many good deeds as possible.
On the occasion of Maharaja Agrasen Jayanti, let us promise ourselves that we will follow our king and always work towards our society. Happy Maharaja Agrasen Jayanti to all.
Let us take inspiration from the leadership of Maharaja Agrasen and aim for a positive and progressive life. Happy Maharaja Agrasen Jayanti to all.
I wish that Maa Durga will take away all your problems and shower you with her choicest blessings for a wonderful year ahead. Happy Navratri!
We are the generation of Maharaja Agrasen and we must be proud of it. Warm wishes on the occasion of Maharaja Agrasen Jayanti to all.
Wishing a very Happy Maharaja Agrasen Jayanti to all. Let us remember the great king whom India has seen and the people of India have loved.
There was no one who would not bow his head to Maharaja Agrasen out of respect because he was a great leader. Happy Maharaja Agrasen Jayanti to all.
शुभकामना संदेश हिंदी में
हे अग्रसेन महाराज आपको हमारा
सादर नमन हो शत-शत प्रणाम
एक ईंट और एक रूपया है आपका नारा
दिल से हम सब करते आपका जयकारा
अग्रसेन जयंती की शुभकामनाएं
महाराजा अग्रसेन की ऐसी कहानी
जैसे निर्मल बहता गंगा का पानी
राजा बल्लभ के घर जन्म अपने पाया
अग्रसेन जी का देव-ऋषियों ने गुण गाया
अग्रसेन जयंती की शुभकामनाएं
माथे पे अग्रोहा का चन्दन मैं लगाने आया हूँ
एक परोपकारी राजा का मैं वंदन करने आया हूँ
किया जिसने खुद को समाज को समर्पित
उस महाराज अग्रसेन को मैं नमन करने आया हूँ
आप सभी को अग्रसेन जयंती की हार्दिक बधाई
पुरे अग्रवंश को आपने हमेशा
इक पावन सूत्र में है बाँधा
जय हो महाराज अग्रसेन का जयकारा
अग्रोहा से आपने दूर किया अँधियारा
अग्रसेन जयंती की शुभकामनाएं
एक फूल कभी दो बार नहीं खिलता
मानव जन्म बार बार नहीं मिलता
यूं तो जन्म मिल जाते हैं हजारों
पर अग्रकुल में जन्म हर बार नहीं मिलता
अग्रसेन जयंती की शुभकामनाएं
हाथो में जिसके तलवार
हर वक़्त हो जिसकी जय जय कार
जिसके नाम से दुश्मन भागे
महाराजा अग्रसेन से कोई ना टकराये
हैप्पी अग्रसेन जयंती
अग्रसेन जी ने अग्रोहा नगरी बसाई
कलरव करते जीव-जन्तु शोभा मन हर्षाई
उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम में गौरव छाया
द्वापर युग के अंत में ये महापुरुष आया
अग्रसेन जयंती की शुभकामनाएं
बांध कर पगड़ी, जब अग्रसेन जी तैयार होते
उठाकर तलवार जब घोड़े पर सवार होते
देखते सब लोग और कहते कि
काश हम भी अग्रवाल होते
जय अग्रसेन, जय अग्रोहा
हैप्पी अग्रसेन जयंती
नये समाज का निर्माण किया
जनक-पिता बनकर आपने
वैश्य जाति का निर्माण किया
आगे बढने का आपने विचार दिया
जय अग्रसेन, जय अग्रोहा…
हैप्पी अग्रसेन जयंती
दूसरों का हित जिनके ह्रदय में बसता
उनको जग में कुछ मुश्किल नहीं होता
सबको मिले सुख और शांति अपार
ऐसा हमारे महाराजा अग्रसेन का प्यार .
अग्रसेन जयंती की शुभकामनाएं

महाराजा अग्रसेन जयंती की तस्वीरें / Maharaja Agrasen Jayanti for Sharing

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