महाष्टमी इस बार 11 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन माता महागौरी की पूजा, कन्या पूजन और संधि पूजा का विशेष धार्मिक महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण दिन दुर्गा अष्टमी, देवी भक्तों के लिए विशेष आध्यात्मिक महत्त्व रखता है। इस दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप, मां महागौरी की आराधना और पूजा की जाती है, जो सौम्यता और शांति की प्रतीक मानी जाती हैं। दुर्गाष्टमी को न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इस दिन कन्या पूजन और संधि पूजा जैसे विशिष्ट अनुष्ठान किए जाते हैं, जो मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं।
नवरात्रि के इस महत्वपूर्ण दिन को ‘महाष्टमी’ या ‘दुर्गाष्टमी’ के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार, यह दिन जगत जननी आदिशक्ति की उपासना के लिए विशेष होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने से भक्त को जीवन के सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है और जीवन की सभी समस्याएं और कष्ट दूर हो जाते हैं।
इस वर्ष दुर्गाष्टमी के दिन शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बना देता है। धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, अष्टमी के दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां दुर्गा की आराधना से जीवन में शांति, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।
महा अष्टमी के दिन विशेषकर निशाकाल में पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे साधक को संपूर्ण सुख-संपत्ति और मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए, इस महत्वपूर्ण दिन के शुभ मुहूर्त, योग, और धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से जानें, ताकि आप इस पावन अवसर पर सही समय और विधि से मां दुर्गा की पूजा कर सकें और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
मुख्य बिंदु (Highlights)
दुर्गाष्टमी (2024) तिथि और मुहूर्त:
अष्टमी पूजा किस तारीख को है? दुर्गाष्टमी, शारदीय नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है, जो देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप, मां महागौरी की पूजा और साधना के लिए समर्पित है। नवरात्रि 2024 का शुभारंभ 3 अक्टूबर 2024 को घटस्थापना से होगा, जब भक्त नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करेंगे। इस वर्ष देवी दुर्गा का आगमन पालकी पर हो रहा है, जो शुभ संकेत माना जाता है। इस विशेष अवसर पर दुर्गा अष्टमी, जिसे महाष्टमी भी कहा जाता है, 11 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है, और भक्त इस दिन माता महागौरी की पूजा के साथ-साथ कन्या पूजन और संधि पूजा भी करते हैं।
महाष्टमी का दिन देवी दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है, और इस दिन साधक अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर करने और सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की आराधना करते हैं। इस दिन कुलदेवी की पूजा का विशेष महत्व होता है और कई भक्त अपने घरों में कन्या पूजन कर नौ कन्याओं को भोजन कराते हैं, जो माता के नौ रूपों का प्रतीक होती हैं।
दुर्गाष्टमी तिथि और पूजा मुहूर्त का सटीक समय इस प्रकार है:
घटना | तिथि और समय |
अश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि प्रारंभ | 10 अक्टूबर 2024, दोपहर 12:31 बजे |
अश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि समाप्त | 11 अक्टूबर 2024, दोपहर 12:06 बजे |
संधि पूजा मुहूर्त | 11 अक्टूबर 2024, सुबह 11:42 से दोपहर 12:30 तक |
मां महागौरी पूजन | 11 अक्टूबर 2024, सुबह 07:47 से 09:14 तक |
कन्या पूजन | 11 अक्टूबर 2024, सुबह 09:14 से 10:41 तक |
इन मुहूर्तों में विशेष ध्यान रखकर पूजा करने से माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, संधि पूजा का विशेष महत्व है, जिसमें अष्टमी और नवमी तिथि के संधिकाल में मां दुर्गा की आराधना की जाती है। यह समय अत्यधिक फलदायी माना गया है और इस दौरान मां दुर्गा की पूजा करने से विशेष लाभ होता है।
दुर्गाष्टमी पर मां महागौरी की पूजा करना और कन्या पूजन विशेष रूप से शुभ माना जाता है। भक्त इस दिन को अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त करने के लिए अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं।
दुर्गाष्टमी पर मां महागौरी की पूजा का महत्व
नवरात्रि के दौरान हर देवी की पूजा का अपना विशेष महत्त्व होता है, और आठवें दिन को मां महागौरी की पूजा के लिए समर्पित किया गया है। मां महागौरी का स्वरूप अत्यंत गौर वर्ण का है, इसलिए इन्हें “महागौरी” के नाम से जाना जाता है। यह देवी परम कृपालु मानी जाती हैं, और कठिन तपस्या के द्वारा उन्होंने गौरवर्ण प्राप्त किया था। मां महागौरी को सौंदर्य, रूप, और स्वास्थ्य प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। यह विश्वास है कि इनकी आराधना से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, और आरोग्यता की प्राप्ति होती है।
महागौरी की पूजा विशेष रूप से उन भक्तों के लिए लाभकारी मानी जाती है जो जीवन में किसी कठिनाई या संकट का सामना कर रहे होते हैं। मां महागौरी शरीर में उत्पन्न विभिन्न प्रकार की व्याधियों को समाप्त करती हैं और जीवन को शांति और समृद्धि से पूर्ण करती हैं। उनके वाहन बैल और शस्त्र त्रिशूल हैं, जो उनके शक्ति और करुणा के प्रतीक माने जाते हैं।
दुर्गाष्टमी व्रत के दौरान अनुष्ठान:
दुर्गाष्टमी के दिन, भक्त माता दुर्गा की पूजा और व्रत रखते हैं। इस दिन की पूजा विधि निम्नलिखित होती है:
- सवेरे उठकर स्नान: भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और माता की पूजा के लिए तैयार होते हैं।
- पूजन सामग्री का अर्पण: माता को फूल, चंदन, धूप आदि चढ़ाए जाते हैं। विशेष तौर पर, “नैवेद्यम” (विशेष भोग) देवी को अर्पित किया जाता है।
- कन्या पूजन: कई स्थानों पर कन्या पूजन भी किया जाता है, जिसमें 6 से 12 वर्ष की आयु की कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजा जाता है। उन्हें विशेष भोजन कराया जाता है और उपहार दिए जाते हैं।
- व्रत: दुर्गाष्टमी व्रत के दौरान उपवास रखना अनिवार्य माना जाता है। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा रखा जाता है। कुछ लोग दूध या फल का सेवन कर व्रत रखते हैं, जबकि अन्य पूर्ण उपवास रखते हैं। व्रत के दौरान मांसाहार और मद्यपान का सेवन पूर्ण रूप से वर्जित होता है। व्रत के अनुयायी जमीन पर सोते हैं और भोग-विलास से दूर रहते हैं।
- जौ बोने की परंपरा: पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में जौ के बीज बोने की परंपरा भी है। जब ये बीज 3-5 इंच तक बढ़ जाते हैं, तो उन्हें देवी को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार के सभी सदस्यों में वितरित किया जाता है।
- मंत्र जाप और देवी चालीसा: इस दिन भक्त विभिन्न देवी मंत्रों का जाप करते हैं और दुर्गा चालीसा का पाठ करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है।
- व्रत कथा का पाठ: पूजा समाप्ति के बाद दुर्गाष्टमी व्रत की कथा का पाठ भी किया जाता है, जो इस पर्व के धार्मिक महत्व को विस्तार से बताता है।
- ब्राह्मण भोजन: पूजा के बाद भक्त ब्राह्मणों को भोजन और दान-दक्षिणा देते हैं, जिसे “संतर्पण” कहा जाता है।
- शक्ति मंदिरों में दर्शन: शाम को भक्त शक्ति मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं। महाष्टमी के दिन कई स्थानों पर विशेष पूजा का आयोजन होता है, जिसमें हजारों भक्त भाग लेते हैं।
दुर्गाष्टमी का व्रत और पूजा श्रद्धा और आस्था का पर्व है, जिसमें मां महागौरी की आराधना कर भक्त अपने जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की कामना करते हैं। इस दिन का हर अनुष्ठान देवी की कृपा और आशीर्वाद पाने का महत्वपूर्ण मार्ग माना जाता है।
दुर्गाष्टमी पर कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। खासतौर पर दुर्गाष्टमी के दिन इस पूजा का विशेष महत्त्व होता है। कन्याओं को देवी दुर्गा का साक्षात स्वरूप माना जाता है, और उन्हें पूजने से माता दुर्गा की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
कन्या पूजन का धार्मिक महत्व इस विचार में निहित है कि कन्याएं शक्ति, पवित्रता और समर्पण का प्रतीक होती हैं। यह मान्यता है कि यदि नवरात्रि के दौरान अष्टमी के दिन कन्या पूजन न किया जाए, तो पूरे नौ दिनों की उपासना का फल प्राप्त नहीं होता। इसी कारण से भक्तजन अष्टमी के दिन विशेष रूप से 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को अपने घर बुलाते हैं, उनका विधिपूर्वक पूजन करते हैं, उन्हें भोजन कराते हैं और उपहार, दान-दक्षिणा देते हैं।
यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक भी है कि नारी शक्ति और सम्मान का आदर करना समाज की एक आवश्यक जिम्मेदारी है। अष्टमी और नवमी के दिन देवता, दानव, राक्षस, गंधर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, और मनुष्य—सभी कन्याओं की पूजा करते हैं, जिससे यह पर्व और भी विशेष हो जाता है।
यदि आप वर्ष 2024 के सभी आने वाले त्योहारों के बारे में जानना चाहते हैं, तो लिंक पर क्लिक करें।
डिस्क्लेमर: यहां प्रकाशित सभी लेख, वीडियो, फोटो और विवरण केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई हैं। किसी भी जानकारी का उपयोग करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।