भाद्रपद पूर्णिमा: पूजा, दान और पितृ पक्ष के शुभ मुहूर्त

Bhadrapada Purnima, Bhado

2024 में भाद्रपद पूर्णिमा का शुभ दिन 17 सितंबर को शुरू हो रहा है, जब चंद्रमा और मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष योग बनेगा। हालाँकि, पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर को सुबह 11 बजे के बाद प्रारंभ हो रही है, इसलिए उदय व्यापिनी तिथि (Uday Vyapini Tithi) के अनुसार 18 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा का स्नान और दान करना अधिक शुभ माना जाएगा। दोनों ही दिन व्रत करने का विकल्प मौजूद है, लेकिन 18 सितंबर को स्नान-दान और पूजा करना अत्यधिक फलदायी होगा।

मुख्य बिंदु (Highlights)

सनातन धर्म में भाद्रपद पूर्णिमा का अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह विशेष तिथि उन पवित्र दिनों में से एक मानी जाती है जब भक्तजन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और चंद्र देव को अर्घ्य (offering water) देने से जीवन की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और व्यक्ति को हर प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। भाद्रपद पूर्णिमा को स्नान-दान और उपवास के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।

पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होता है, और मान्यता है कि इस रात चांद की किरणों से अमृत (nectar) की वर्षा होती है। इस पवित्र दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण (Satyanarayan) स्वरूप की पूजा का विशेष महत्व होता है। नारद पुराण (Narada Purana) के अनुसार, इस दिन उमा-महेश्वर (Uma-Maheshwar) व्रत का पालन भी किया जाता है, जो शिव और पार्वती की कृपा प्राप्त करने का महत्वपूर्ण उपाय है। यह व्रत विशेष रूप से उन अविवाहित कन्याओं और युवकों के लिए शुभ माना जाता है, जिनका विवाह शीघ्र होना होता है। जिस भी विशेष इच्छा की पूर्ति के लिए यह व्रत रखा जाता है, वह जल्दी पूरी हो जाती है।

इस दिन भाद्रपद पूर्णिमा व्रत, सत्यनारायण पूजा और कथा (Satyanarayan Puja and Katha) अधिकांश भारतीय households में की जाती है। नारद पुराण के अनुसार, जब नारद मुनि ने भगवान विष्णु से पूछा कि संसार की दुःखद स्थितियों से कैसे उबरा जा सकता है, तो विष्णु ने उत्तर दिया कि जो लोग सत्यनारायण पूजा व्रत (Satyanarayan Puja Vrat) करते हैं और सत्यनारायण कथा (Satyanarayan Katha) सुनते या पढ़ते हैं, वे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा पर सत्यनारायण पूजा और व्रत विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन किए गए व्रत और पूजा अन्य दिनों की तुलना में अधिक लाभकारी और विशेष आशीर्वाद प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करते हैं।

सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए यह समय विशेष रूप से पूजनीय होता है, जब वे अपने जीवन की बाधाओं और कष्टों से मुक्ति पाने के लिए भगवान की आराधना करते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा, जिसे बड़ पूर्णिमा (Bada Purnima) या चंद्र पूर्णिमा (Chandra Purnima) भी कहा जाता है, का विशेष संबंध भगवान विष्णु से है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। साथ ही, माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन और वैभव (wealth) की प्राप्ति होती है। चंद्र देव को अर्घ्य अर्पित करने से मानसिक शांति और जीवन में संतुलन प्राप्त होता है, जो व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।

भाद्रपद / भादो माह क्या है?

भाद्रपद (Bhadrapada) हिंदू कैलेंडर का छठा महीना है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त और सितंबर महीनों के साथ मेल खाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं और ज्योतिष के अनुसार, भाद्रपद एक विशेष महीना है जो पवित्र व्रत और भक्ति के लिए समर्पित होता है। इसे भादो (Bhado) भी कहा जाता है और इस महीने में कई महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार जैसे जन्माष्टमी और गणेश चतुर्थी मनाए जाते हैं। इस पवित्र दिन पर सत्यनारायण पूजा व्रत (Satyanarayan Puja Vrat) करना और व्रत कथा (Vrat Katha) सुनना या पढ़ना भक्तों के लिए लाभकारी होता है क्योंकि इससे सभी दुखों का नाश होता है और समृद्धि प्राप्त होती है।

भाद्रपद पूर्णिमा 2024 का मुहूर्त

  • पूर्णिमा तिथि शुरू: 17 सितंबर 2024, सुबह 11:44 बजे
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 18 सितंबर 2024, सुबह 08:04 बजे
  • स्नान-दान का मुहूर्त: सुबह 04:33 से 05:20 बजे तक
  • सत्यनारायण भगवान की पूजा का समय: सुबह 09:11 बजे से दोपहर 01:37 बजे तक
  • चंद्रोदय का समय: शाम 06:03 बजे
  • लक्ष्मी जी की पूजा का समय: रात 11:52 बजे से प्रात: 12:39 बजे तक, 18 सितंबर

भाद्रपद पूर्णिमा से पितृ पक्ष का आरंभ भाद्रपद मास की पूर्णिमा, यानी 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत मानी जाएगी, जो 16 दिनों तक चलेगा। इसका समापन 2 अक्टूबर को होगा, और 3 अक्टूबर से नवरात्रि की शुरुआत होगी। पूर्णिमा के दिन व्रत रखने और रात्रि में मां महालक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक संकट दूर होते हैं और जीवन में समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन चंद्रोदय शाम 6:03 बजे होगा, और जो लोग व्रत रखते हैं, वे चंद्रमा की पूजा इसी समय के बाद करें।

भाद्रपद पूर्णिमा पर क्या करें?

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करनी चाहिए। पीपल के चारों ओर परिक्रमा करने से घर में सुख, शांति, और समृद्धि आती है। इस पवित्र दिन पर पितरों के नाम पर दान-पुण्य करना भी बहुत शुभ माना जाता है, जिससे घर में खुशहाली का वास होता है। साथ ही, उन लोगों का श्राद्ध (Shraddha) भी करना चाहिए जो पूर्णिमा के दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा पर जरूर करें ये दान

इस साल भाद्रपद पूर्णिमा अत्यंत शुभ मानी जा रही है, क्योंकि इस दिन कई शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस पवित्र तिथि पर दान करते हैं, उन्हें दोगुना फल प्राप्त होता है। विशेष रूप से, अन्न (food), कौड़ियां (cowries), सफेद मिठाई (white sweets), वस्त्र (clothes), धन (money), और चांदी (silver) का दान अत्यधिक शुभ माना जाता है। इससे न केवल घर में समृद्धि और बरकत बनी रहती है, बल्कि मां लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति के जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं की भी वृद्धि होती है।

पूर्णिमा श्राद्ध

भाद्रपद पूर्णिमा पर पितरों का पूजन भाद्रपद पूर्णिमा, जो इस वर्ष 17 सितंबर 2024 को पड़ रही है, पर पूर्णिमा श्राद्ध का विशेष महत्व है। इस दिन हिंदू धर्म के अनुयायी अपने पितरों (ancestors) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए श्राद्ध कर्म (Shraddha rites) करते हैं। यह दिन पितरों को सम्मान देने और उनकी कृपा प्राप्त करने का एक पवित्र अवसर होता है।

पूर्णिमा श्राद्ध के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और पितरों को अर्पित करने के लिए तर्पण (water offering for ancestors) और पिंडदान (offering of rice balls) किया जाता है, विशेष रूप से गंगा घाट या किसी पवित्र जल स्रोत के किनारे। इस दिन अन्न, वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्त्रों का दान भी किया जाता है, जिससे पितरों की आत्मा को संतुष्टि प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन श्रद्धा से अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं, उनके घर में शांति, समृद्धि और संतोष बना रहता है।

इस दिन को और भी पवित्र माना जाता है क्योंकि अगले दिन यानी 18 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है। पितृ पक्ष के दौरान पितृलोक से सभी पितर धरती पर आते हैं और 16 दिनों तक धरती पर निवास करते हैं, जिसके बाद वे महालया अमावस्या (Mahalaya Amavasya) (2 अक्टूबर 2024) के दिन वापस पितृलोक चले जाते हैं।

पूर्णिमा के दिन श्राद्ध और पिंडदान करना पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन कोई भी नया कार्य शुरू करना या नई वस्तुएं खरीदना अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह समय पूर्वजों को समर्पित होता है और उनके प्रति आस्था और श्रद्धा प्रकट करने का होता है।

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