वन नेशन, वन इलेक्शन: फायदे और चुनौतियाँ आसान भाषा में जानें

वर्ष 1951-52 से लेकर 1967 तक, लोकसभा (Lok Sabha) और राज्य विधानसभाओं (State Assemblies) के चुनाव साथ-साथ कराए जाते थे। इसके बाद, यह चक्र टूट गया और अब स्थिति यह है कि हर साल या कभी-कभी एक ही वर्ष के अंदर अलग-अलग समय पर चुनाव आयोजित होते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को अत्यधिक खर्च उठाने पड़ते हैं।

सुरक्षा बलों (Security Forces) और अन्य चुनाव अधिकारियों (Election Officers) को अपने मूल कर्तव्यों से हटाकर लंबे समय तक चुनावी कार्यों में लगाया जाता है। आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) के लंबे समय तक लागू रहने से विकास कार्यों में भी बाधा आती है।

केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (One Nation, One Election) पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है। समिति का सुझाव है कि हमें उस पुराने तरीके को फिर से लागू करना चाहिए, जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे।

मुख्य बिंदु (Highlights)


वन नेशन, वन इलेक्शन क्या है? (What is one nation one election)

“वन नेशन, वन इलेक्शन” (One Nation, One Election) का मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव एक साथ कराना है, ताकि हर पांच साल में एक ही बार चुनाव हो। इससे बार-बार चुनाव कराने की जरूरत नहीं होगी, जिससे समय और संसाधनों की बचत होगी। इस विचार के तहत लोकसभा (Lok Sabha) और सभी राज्य विधानसभाओं (State Assemblies) के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इससे प्रशासनिक और आर्थिक लागत (Administrative and Economic Costs) में कमी आएगी और चुनाव प्रक्रिया भी सरल हो जाएगी।

यह विचार नया नहीं है। 1983 में चुनाव आयोग (Election Commission) ने पहली बार इसे प्रस्तावित किया था। 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव होते थे, लेकिन 1968-69 में कई राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं, जिससे यह चक्र टूट गया। 1970 में लोकसभा भी अपनी अवधि पूरी होने से पहले भंग कर दी गई, जिसके बाद केंद्र और राज्यों के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।

वर्तमान में, राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव स्वतंत्र रूप से होते हैं, या तो सरकार के पांच साल पूरे होने पर या फिर समय से पहले भंग होने की स्थिति में। “वन नेशन, वन इलेक्शन” का उद्देश्य इस चुनावी असंतुलन (Electoral Imbalance) को खत्म करना और पूरे देश में एक साथ चुनावी प्रक्रिया का आयोजन करना है।


वन नेशन, वन इलेक्शन: फायदे

वन नेशन, वन इलेक्शन के समर्थक मानते हैं कि एक साथ चुनाव कराने से कई फायदे हो सकते हैं, जिनमें खर्च की बचत, प्रशासनिक दक्षता (Administrative Efficiency) में सुधार और अधिक मतदाता सहभागिता (Voter Turnout) शामिल हैं। यह विचार खासतौर पर भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में महत्वपूर्ण हो जाता है, जहां चुनाव कराने में बड़े पैमाने पर संसाधन और समय लगता है।

  1. चुनाव खर्च में कमी
    चुनावों के बार-बार होने से खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग ₹60,000 करोड़ रुपए का खर्च आया था, जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा किया गया खर्च और चुनाव आयोग (Election Commission) द्वारा किए गए चुनावी खर्च शामिल थे। इसके साथ ही, सुरक्षा बलों (Security Personnel) की बार-बार तैनाती और उनके कार्यों में व्यवधान के कारण अतिरिक्त खर्च भी होता है। वन नेशन, वन इलेक्शन से यह खर्च घट सकता है, क्योंकि अलग-अलग चुनावों के लिए बार-बार निवेश की जरूरत नहीं होगी।
  2. आचार संहिता के प्रभाव से मुक्ति
    चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू हो जाती है, जिसके चलते विकास कार्य (Development Work) और सरकारी कामकाज पर रोक लग जाती है। बार-बार चुनाव होने से यह समस्या लगातार सामने आती है। यदि देश में एक साथ चुनाव कराए जाएं, तो आचार संहिता केवल एक बार लागू होगी, जिससे विकास कार्यों में रुकावटें कम होंगी।
  3. सुरक्षा बलों पर कम बोझ
    चुनावों में स्थानीय पुलिस के साथ-साथ केंद्रीय सुरक्षा बलों (Central Security Forces) को भी बड़ी संख्या में तैनात किया जाता है। लगातार चुनाव होने से इन बलों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। वन नेशन, वन इलेक्शन के तहत, एक साथ चुनाव होने से सुरक्षा बलों पर काम का बोझ कम होगा और उन्हें अन्य सुरक्षा कार्यों के लिए उपलब्ध कराया जा सकेगा।
  4. विकास कार्यों में तेजी
    बार-बार चुनावों के कारण विकास कार्यों में रुकावटें आती हैं, क्योंकि आचार संहिता लागू होते ही कई सरकारी योजनाएं और प्रोजेक्ट ठप हो जाते हैं। एक साथ चुनाव होने पर यह समस्या केवल एक बार आएगी, जिससे विकास कार्यों में तेजी आएगी और लंबी अवधि तक रुकावटें नहीं होंगी।
  5. राजनीतिक भ्रष्टाचार में कमी
    बार-बार चुनावों के चलते राजनीतिक दलों को लगातार फंडिंग जुटाने की आवश्यकता होती है, जिससे भ्रष्टाचार (Corruption) की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अगर चुनाव पांच साल में एक बार होते हैं, तो चुनावी अभियान (Election Campaign) की संख्या भी कम होगी, जिससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

इस प्रकार, “वन नेशन, वन इलेक्शन” से देश में चुनावी प्रक्रिया सरल, कम खर्चीली और अधिक प्रभावी हो सकती है, जिससे सरकारें बिना चुनावी दबाव के अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।

One Nation One Election

वन नेशन, वन इलेक्शन: चुनौतियाँ

वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करना जितना फायदेमंद हो सकता है, उतना ही यह कई चुनौतियों का सामना भी करता है। इन चुनौतियों में संवैधानिक, संघीय और प्रशासनिक मुद्दे शामिल हैं, जो इस व्यवस्था को लागू करने में बाधा बन सकते हैं।

  1. संवैधानिक बाधाएं
    भारतीय संविधान के अनुसार, लोकसभा (Lok Sabha) और राज्य विधानसभाओं (State Assemblies) का कार्यकाल पांच साल का होता है, जब तक कि सरकार पहले न भंग हो जाए। यदि किसी सरकार का कार्यकाल बीच में समाप्त होता है, तो चुनावी चक्र बाधित हो सकता है। इसके लिए संविधान के प्रमुख अनुच्छेदों, जैसे अनुच्छेद 83, 85(2)(B), 174(2)(B), 356, और 75(3) में संशोधन की आवश्यकता होगी, जो कि एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, इस तरह के संशोधनों के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत और आधे से अधिक राज्यों की सहमति भी जरूरी है।
  2. संघवाद की चिंता
    भारत की संघीय प्रणाली (Federalism) में राज्य सरकारों की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। वन नेशन, वन इलेक्शन से राज्य सरकारों की स्वायत्तता (Autonomy) पर असर पड़ सकता है। क्षेत्रीय दलों का मानना है कि इस व्यवस्था से राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तरीय मुद्दे दब जाएंगे, जिससे राज्य विकास की अनदेखी हो सकती है। इससे देश के संघीय ढांचे (Federal Structure) पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  3. प्रशासनिक और लॉजिस्टिक चुनौतियां
    वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता होगी। इसके लिए भारी संख्या में ईवीएम (Electronic Voting Machines), प्रशिक्षित कर्मचारियों, और सुरक्षा बलों की आवश्यकता होगी। चुनाव आयोग ने अनुमान लगाया है कि केवल ईवीएम की खरीद पर हर 15 साल में ₹10,000 करोड़ खर्च होंगे, जो अभी धीरे-धीरे किया जाता है। इस राशि का एकमुश्त खर्च एक बड़ी चुनौती हो सकता है।
  4. लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की चिंता
    अलग-अलग समय पर होने वाले चुनावों से मतदाताओं को अपनी राय बार-बार व्यक्त करने का अवसर मिलता है, जिससे सरकारें जनता के प्रति जवाबदेह रहती हैं। वन नेशन, वन इलेक्शन से यह प्रक्रिया कमजोर हो सकती है और मतदाताओं को अपनी आवाज उठाने के अवसर कम मिलेंगे।
  5. एक ही पार्टी का वर्चस्व
    कुछ अध्ययनों से यह भी पता चला है कि जब चुनाव एक साथ होते हैं, तो अक्सर एक ही पार्टी को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जीतने का फायदा मिलता है। इससे राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय मुद्दों में अंतर धुंधला हो सकता है, और स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा हो सकती है।
  6. आर्थिक और कानूनी चिंताएं
    वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए आवश्यक प्रारंभिक निवेश भी एक बड़ा मुद्दा है। इसके अलावा, कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह विचार संविधान के सिद्धांतों से टकरा सकता है, खासतौर पर सुप्रीम कोर्ट के एस. आर. बोम्मई मामले में दिए गए फैसले के तहत राज्यों की स्वायत्तता पर जोर दिया गया है।

इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने के लिए बड़े स्तर पर संवैधानिक, प्रशासनिक और संघीय ढांचे में बदलाव की आवश्यकता होगी। यह व्यवस्था जहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सरल बना सकती है, वहीं इसके कार्यान्वयन में बड़े पैमाने पर सुधारों की जरूरत होगी।

One Nation One Election
Image Credit: Dinodia Photos / Alamy Stock Photo

वैश्विक परिप्रेक्ष्य: एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था

दुनिया के कई देशों में एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था अपनाई जाती है। यह व्यवस्था विभिन्न देशों में चुनावी प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाने के लिए लागू की गई है।

दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में, राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव (National and Provincial Elections) हर पांच साल में एक साथ होते हैं, जबकि नगरपालिका चुनाव (Municipal Elections) दो साल बाद आयोजित किए जाते हैं। यह प्रणाली चुनावी संसाधनों (Electoral Resources) का कुशल उपयोग सुनिश्चित करती है और चुनावी चक्र को सुव्यवस्थित बनाती है।

स्वीडन (Sweden) में, राष्ट्रीय, प्रांतीय और स्थानीय चुनाव (National, Provincial, and Local Elections) हर चार साल में आयोजित किए जाते हैं। इस प्रणाली से मतदाता नियमित रूप से चुनावों में भाग लेते हैं और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है।

ब्रिटेन (UK) में, स्थिर कार्यकाल के अधिनियम (Fixed-term Parliaments Act) के तहत चुनावों का एक नियमित कार्यक्रम तय किया गया है। इससे चुनावी तारीखें पूर्वानुमानित रहती हैं और प्रशासनिक तैयारी में सहूलियत होती है।

इसके अलावा, बेल्जियम (Belgium), जर्मनी (Germany), जापान (Japan), इंडोनेशिया (Indonesia), और फिलीपीन्स (Philippines) जैसे देशों में भी एक साथ चुनाव कराने की प्रणाली अपनाई जाती है। ये देश विभिन्न स्तरों पर चुनावों को एक साथ आयोजित करके चुनावी खर्च और प्रशासनिक भार को कम करते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया अधिक प्रभावी और संगठित बनती है।


कैसे लागू होगा ‘वन नेशन वन इलेक्शन’?

सरकार ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ योजना को दो चरणों में लागू करने की योजना बना रही है:

पहला चरण: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।

दूसरा चरण: नगरपालिका और पंचायत चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के भीतर आयोजित किया जाएगा।

इसके अलावा, सभी चुनावों के लिए एक सामान्य मतदाता सूची (Common Electoral Roll) का उपयोग किया जाएगा। वोटर आईडी कार्ड (Voter ID Cards) की तैयारी चुनाव आयोग (Election Commission of India) और राज्य चुनाव अधिकारियों (State Election Authorities) के सहयोग से की जाएगी।

समिति की सिफारिश है कि पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएं। दूसरे चरण में, नगरपालिका और पंचायत चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ समन्वयित किया जाए, ताकि ये चुनाव लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के भीतर कराए जा सकें।


अगर चुनावों में हंग हाउस (Hung House) या अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं तो क्या होगा?

अगर हंग हाउस (Hung House), अविश्वास प्रस्ताव (No-confidence Motion), या कोई अन्य ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो नए लोकसभा या राज्य विधानसभाओं के गठन के लिए ताजे चुनाव कराए जाने चाहिए। नई सदन का कार्यकाल केवल पिछले पूर्ण कार्यकाल की बची हुई अवधि (Unexpired Term) तक रहेगा।

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